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Dr Viram

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पशु सेवा ही अपने जीवन का आधार बनाया।

अपनो का दर्द देखकर हर कोई रोता है,
लेकिन जो किसी जानवर के दर्द को भी देखकर पिघल जाए ,
ऐसे “विराम” विरले ही होते हैं..

हर किसी को जिसने एक जैसा समझा और दिया एक जैसा मान,
जानवर हो या इंसान ,
अगर ‘विराम’ जैसा हो जाए हर कोई,
तो बन जाए ये जीवन स्वर्ग समान,

लोग जहाँ पशुओं से नफरत करते हैं वहीं कुछ लोग पशु सेवा में ही ईश्वर भक्ति का रूप मानते है। डॉ विराम वार्ष्णेय भी इनमें से एक हैं। परिवार में काफी उतार चढ़ाव के बाद भी आपने कभी हिम्मत नही हारी और आज एक सफल पशु शल्य चिकित्सक के साथ सामाजिक कार्यों में अपनी उम्दा भूमिका निभा रहे हैं।

डॉ विराम का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में हुआ था। स्कूल की पढ़ाई हरियाणा के जवाहर नवोदय विद्यालय, करीरा, महेन्द्रगढ़ से पूर्ण की। पिताजी भी नवोदय विद्यालय में प्राचार्य थे। शुरू से ही डॉ विराम को पशुओं से काफी लगाव था जब वह पढ़ते थे तो अपने खाली समय में इन पशुओं को खाना खिलाया करते थे।

स्कूल की पढ़ाई पूर्ण होने के बाद उन्होंने आगे के पढ़ाई के लिए प्रतियोगिता की तैयारी की और उत्तर प्रदेश में MBBS की पढ़ाई के लिए चयन हो गया था पर ईश्वर को शायद कुछ और ही मंजूर था  कॉउंसलिंग से 2 दिन पहले पिताजी की हृदय गति रुकने की वजह से देहांत हो गया और पूरा परिवार मानो टूट ही गया, आर्थिक स्थिति के कारण MBBS की पढ़ाई भी छोड़नी पड़ी ।
पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और प्रतियोगिता की तैयारी की और अगले वर्ष ही उनका चयन B.V.Sc &A.H  मथुरा के लिए हो गया। अपनी पढ़ाई के साथ वहाँ वो बच्चों को ट्यूशन देकर अपनी कॉलेज की पढ़ाई  और होस्टल की फीस भरते थे ताकि घरवालो से पैसा न लेना पड़े। पढ़ाई के साथ घर मे अपनी माताजी की देखभाल भी किया करते थे।
 
मथुरा से ही उन्होंने अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन [M.V.Sc (Surgery&Radiology)] से पढ़ाई संपूर्ण होने के बाद उनका अस्सिस्टेंट प्रोफेसर भरतपुर वेटेरिनरी कॉलेज में चयन हो गया उसके बाद वहां से नौकरी छोड़ी और एक विश्व स्तरीय NGO ब्रूक हॉस्पिटल फ़ॉर एनिमल्स में 6 साल काम किया जिसमें रहते हुए उन्होंने कई देश विदेश का अनुभव प्राप्त किया।
जब कभी भी वह अपने आस पास आवारा पशुओं को दयनीय हालत में देखते थे तो उनका मन पसीज जाता था, तब उन्होंने अपना मन बना लिया था कि अब कहीं एक स्थायी ठिकाना बनाकर आवारा पशुओं की कैसे सेवा की जाए।
अपनी नौकरी से इस्तीफा देने के बाद आज वो अलीगढ़ में अपनी प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहे हैं साथ ही एक अपनी NGO भी चला रखी है जहाँ वो आवारा और ज़रूरत मंद जानवरों को अलीगढ़ के पशु प्रेमियों के सहयोग से निःशुल्क एवम निःस्वार्थ सेवा दे रहे हैं। डॉ विराम अपने कार्य के कारण अलीगढ़ जिले के प्रसिद्ध अखबार एवं न्यूज़ चैनलों की सुर्ख़ियों में रहते है आसपास के जिलों में उनके जैसा सच्चा और निःस्वार्थ सेवा देने वाला पशु शल्य चिकित्सक नहीं है। हम उनके ज़ज्बे को सलाम करते हैं और वह जीवन में ऐसी कई ऊंचाई को छुएँ ऐसी हम कामना करते हैं।

इश्क हुआ तो, उसको क्या हुआ

निभा ना पाए जो अपनो से भी मौहब्बत

वो उसने बेगाने, अनजाने
बेजुबानों से भी
खूब निभाया


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