हिमाचल प्रदेश के मनाली की रहने वाली मीनल का बचपन बेहद गरीबी और मुश्किलों में बीता है|
मीनल के माता-पिता मनाली में ही एक ढाबा चलाते थे| उसके बचपन का ज्यादातर हिस्सा उसी ढाबे में काम करके बीता| हालांकि, उस दौरान उसकी पढ़ाई नहीं छुटी| स्कूल से आने के बाद मीनल आपने माता-पिता के साथ ढाबे में काम किया करती थी|
कबड्डी पर ज्यादा कुछ खर्चा नहीं था
आर्थिक समस्या के चलते वो अक्सर कबड्डी के लिए अपना नाम लिखा देती थी| इसकी वजह यही थी कि इस खेल मे ना तो अलग से ड्रेस खरीदने की जरूरत होती थी और ना ही जूते| ऐसे मे कबड्डी पर ज्यादा कुछ खर्चा नहीं था| वहां बस शारीरिक मजबूती और तेज दिमाग के साथ फुर्ती चाहिए होती थी| स्कूल मे दाखिला लेते ही इन्होने ठान लिया था,कि कबड्डी मे करियर बनाना है|
ज़िन्दगी मे एक मोड़ आया
हर किसी की सक्सेस लाइफ मे परीक्षाएं ना आये ऐसा नहीं हो सकता। इसी तरह उसकी ज़िन्दगी मे भी एक मोड़ आया, वर्ष 2011 मे इनके पेट को एक गंभीर बीमारी ने घेर लिया| डॉक्टरों ने बताया कि उनके पाचन तंत्र मे इन्फेक्शन है| इसके चलते वो तकरीबन छह माह तक बिस्तर पर पड़ी रही| इस दौरान कई बार उन्हें लगा कि अब उनका करियर ख़तम हो जायगा और अब शायद ही वो मैदान पर खेल सकें| लेकिन धीरे-धीरे बुरा वक्त बीत गया और वो दोबारा मैदान मेँ उत्तरी
मीनल ऑलराउंडर थी, लेकिन इनके कोच ने इनसे कहा कि गेम के किसी खास छेत्र मेँ मेहनत हासिल करो। इसके बाद,वो फुल-टाइम डिफेंडर बन गई | इनकी टीम ने भी अच्छा प्रदर्शन किया और स्वर्ण पदक पर कब्ज़ा जमाया| वर्ष 2014 के एडिशन खेल मेँ हमने दोबारा स्वर्ण पदक जीता| स्वर्ण पदक जीतने के बाद उनकी ज़िन्दगी बदल गई| सरकार ने उन्हें इनाम के तौर पर आर्थिक मदद दी, जिसके बाद वो ढाबा छोड़कर आपने परिवार के साथ मनाली के पास एक फ्लैट लेकर रहने लगी|
मीनल का छोटा भाई अब अच्छे स्कूल मेँ पढ़ाई कर रहा है| वह इनके और परिवार के लिए गर्व एवम भावुकता का पल था,जब इन्होने आपने माता-पिता के लिए छत का इंतज़ाम किया| इनकी बहन और माता-पिता ने हमेशा उनका सपोर्ट किया| वे चाहते थे कि मीनल अपने सपनों को पूरा करे।